174--02-11
ना मेरी,ना तेरी
ये दुनिया एक बसेरा
तेरा मेरा कुछ वक़्त का
आशियाना
ना हक तेरा,ना हक
मेरा
मालिकाना हक,खुदा का
सारा
दुनिया इक गुलशन
खुदा का
हम रखवाले इस
गुलशन के
निरंतर बहार को बनाए
रखना
कांटे नफरत के
उखाड़ना
भाईचारे की खाद से
हरा भरा इसे रखना
पानी मोहब्बत का
पिलाना
महफूज़ इसे रखना
काम हमारा
दुनिया मंजिल नहीं
पड़ाव इंसान के
सफ़र का
मुसाफिर हर शख्श
सफ़र का
जहां से आया लौट कर
जाना है
सफ़र को मुकम्मल
ज़न्नत में करना है
01-02-2011
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