182--02-11
अब
दिल को सज़ा
दे रहा हूँ
उस की हर बात
भुला रहा हूँ
हर लम्हां जो साथ
गुजारा
याद उसकी मिटा
रहा हूँ
दिल में एक
आशियाना
उनके नाम का
बनाया
उसकी हर ईंट
उखाड़ रहा हूँ
निरंतर मोहब्बत से
रखा दिल में
वजूद उसका मिटा
रहा हूँ
खुदा समझ कर
रखा दिल के
मंदिर में
मूर्ती उसकी
हटा रहा हूँ
उसकी जगह अब
मज़ार बना
रहा हूँ
02-02-2011
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