Tuesday, February 8, 2011

कढाई ज़िन्दगी की उबलती रहती ,कभी धूप कभी छाँव होती


193--02-11
कढाई ज़िन्दगी की
उबलती रहती
कभी धूप कभी छाँव
होती
कभी मुस्कान चेहरे पर
कभी शक्ल रुआंसी
होती
ज़िन्दगी रंग अपने
बदलती
कभी ठहरती,थोड़ा सा
रुकती
फिर पहिये से चलती
रहती
कभी तेज़ कभी धीरे
गुडकती
मैं पहिये के कीले सा
साथ घूमता
कभी हंसता,कभी रोता
कभी सोता,कभी जागता
निरंतर इंतज़ार
उबाल ठंडा होने का
करता
जीवन सफ़र कब
रुकेगा
"निरंतर"सोचता रहता
04-02-2011

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