पुत्र बसा विदेश में
माँ को याद सताए
ना चिट्ठी ना पत्री
ना समाचार महीनों से आए
धारा अश्रूओं की निरंतर बह रही
ह्रदय की पीड़ा आँखों से दिख रही
मन को व्यथित कर रही
सूरत उसकी
मानस पटल परछा रही
बचपन की हर हरकत
चल चित्र सी दिख रही
मन ही मन सोच रही
जब भी लौटेगा
वापस नहीं जाने दूंगी
कसम उसे दिलाऊंगी
अब देश में ही रहना होगा
मात्र भूमी की सेवा में
जीवन गुजारना
होगा
02-02-2011
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