186--02-11
परमात्मा से
मिलने की इच्छा प्रबल
वर्षों से प्रतीक्षारत
मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे
में ढूंढा
जंगल,पहाड़,रेगिस्तान
में खोजा
अब तक मुझे मिला नहीं
सदा की तरह मन
व्याकुल
निरंतर मिलने को
आतुर
जिज्ञासा बढ़ती जा रही
आशा निराशा में
बदल रही
सपने में एक दिन
चेहरा खुद का दिखा
बात मुझसे ही कर रहा
क्यूं समय व्यर्थ कर रहे
जग में भटक रहे,
परमात्मा को ढूंढ रहे
वो अन्दर तुम्हारे
बैठा
मन से ढूंढों उसे
कर्म करो,वो कहे जैसे
तुम्हें अवश्य दिखेगा
साक्षात्कार उस से होगा
मोक्ष का रास्ता
खुलेगा
03-02-2011
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