Sunday, December 30, 2012

कोई रात अंधेरी नहीं होती



कोई रात
अंधेरी नहीं होती
कोई दिन
उजला नहीं होता
केवल रोशनी की कमी
या अधिकता होती
मन संतुष्ट
ह्रदय प्रसन्न हो तो
काली रात उजली
उजले दिन में भी
अन्धेरा लगता
976-95-30-12-2012
मन,ह्रदय,संतुष्ट,संतुष्टि

जब तक बदलेंगे नहीं पुरुष



 कुचली जायेंगी 
नौची जायेंगी 
जलाई जाती रहेंगी
नारियां 
मोमबत्तियां जलाई 
जायंगी
मोमबत्तियां बुझ 
भी जायेंगी
तस्वीर पर फूल
चढ़ाए जायेंगे 
फूल मुरझा भी जायेंगे
सैकड़ों सालों से
नहीं बदली है स्थिति 
सैकड़ों सालो तक
नहीं बदलेगी स्थिति 
जब तक बदलेंगे नहीं
पुरुष मानसिकता अपनी 
मानेंगे नहीं नारी को देवी
देखेंगे नहीं नारी में 
अपनी माँ,बहन,बेटी
975-94-30-12-2012
नारी,स्त्री,माँ,बहन बेटी ,औरत,

Thursday, December 20, 2012

देश में अज़ब तमाशा हो गया है



देश में अज़ब तमाशा हो गया है
प्रजातंत्र का सत्यानाश हो गया है
देश नेताओं की भेंट चढ़ गया है
नेता का बेटा भी नेता हो गया है
रातों रात अमीरों को बाप हो गया
बिना पैंदे का नेता तो बना ही
बिना धंधे का धंधेबाज़ हो गया है
पढ़ा चाहे चार क्लास भी नहीं हो
पढने वालों से आगे निकल गया है
बेकार से अब काम का हो गया है
गरीब बेचारा गरीब ही रह गया है
पहले भी भूख से मरता रहा है
अब भी भूख से मर रहा है
देश में अज़ब तमाशा हो गया है
974-93-20-12-2012
देश,भ्रष्टाचार,नेता, प्रजातंत्र

निरंतर चलता रहा हूँ



निरंतर चलता रहा हूँ
जीवन से सीख कर
जीवन में उतारता रहा हूँ
कई मोड़ों पर ठिठका हूँ
कई मोड़ों पर झिझका हूँ
फिर भी रुका नहीं
पथ से भटका नहीं
रुकावटों से लड़ता रहा हूँ
विवेक को नहीं
उसूलों को तोड़ा नहीं
लाभ हानि देखी नहीं
आँखें भीगी मगर
असफलता में कभी
रोया नहीं हूँ
अपनी शर्तों पर जीता
रहा हूँ
निरंतर चलता रहा हूँ
जब तक लिखा है
भाग्य में जीना
जब तक चलता रहूँगा
सच के लिए लड़ता रहूँगा
जो उमड़ता हैं मन में
निरंतर कहता रहूँगा
973-92-20-12-2012
निरंतर, जीवन

Wednesday, December 19, 2012

तेरे बगैर



आँखों के सामने
बोतल भरी शराब की
पीने का मन नहीं करता
खूबसूरत फूल खिले हैं
घर के बगीचे में
देखने का मन नहीं करता
हमें हाँसिल हैं
हर तरह की खुशहालियाँ
मगर तेरे बगैर जीने का
मन नहीं करता
972-91-19-12-2012
शायरी ,तेरे बगैर, मोहब्बत

नित नए खेल दिखाती ज़िन्दगी



नित नए खेल
दिखाती ज़िन्दगी
कभी उठाती
कभी गिराती ज़िन्दगी
टुकड़ों टुकड़ों में
बांटती ज़िन्दगी
कभी रुलाती
कभी हंसाती ज़िन्दगी
किस की हुयी है
ज़िन्दगी
जो मेरी होगी
पता नहीं
कब साथ छोड़ देगी
ज़िन्दगी
971-90-19-12-2012
ज़िन्दगी

तुम्हारी तरफ हाथ बढाता हूँ



तुम्हारी तरफ  हाथ
बढाता हूँ
तुम्हारा अभिवादन
करता हूँ
तुम मेरा हाथ पकडती भी हो
मुस्कराकर मेरा अभिवादन
स्वीकार भी करती हो
फिर अचानक
मुंह फिरा लेती हो
बार बार यही  बात
दोहराई जाती है
या तो तुम सोचती हो
मैं तुम पर आसक्त हूँ
तुमसे प्रेम का इज़हार
करता हूँ
या तुम समझती हो मैं
केवल औपचारिकता
निभाता हूँ
मैं तो केवल मित्र भाव
दर्शा रहा था
बिना मंतव्य जाने
ऐसा सोचना भी अपराध है
मित्र को शक और स्वार्थ से
ऊपर रहना होता है
मैं तो केवल एक सच्चे
मित्र को ढूंढ रहा था
तुम में शक और बहम  से दूर
एक मित्र नज़र आया
इसलिए सम्बन्ध बढ़ा
रहा था
970-89-19-12-2012
शक,बहम  

जिसने जैसे भी देखा ज़िन्दगी को



जब इंसान चाहता
ठहराव ज़िन्दगी में
ठहरती नहीं ज़िन्दगी
जब चलना चाहता
चलती नहीं ज़िन्दगी
किसी मन की इच्छा
मानती नहीं ज़िन्दगी
सदा अपने तरीके से
चलती ज़िन्दगी
जिसने जैसे भी देखा
ज़िन्दगी को
उसे वैसी ही लगी
ज़िन्दगी
969-88-19-12-2012
ज़िन्दगी

कशमकश में



ज़िन्दगी भर
मंजिल की तलाश में
निरंतर
बिना रुके चलता रहा
पर इच्छाएं मुझसे भी
आगे चलती रही
मंजिल भी हर दिन
बदलती रही
ना इच्छाएं रुकी
ना मंजिल मिली
दोनों की कशमकश में
ज़िन्दगी ज़रूर
उलझ कर रह गयी
968-87-19-12-2012
ज़िन्दगी,कशमकश

ह्रदय हँसता भी है,ह्रदय रोता भी है



मुझे बगीचे में जाना
अच्छा भी लगता है
अच्छा नहीं भी लगता है
ह्रदय हँसता भी है
ह्रदय रोता भी है
कुछ फूल खिले हुए
कुछ मुरझाये मिलते हैं
मेरे आस पास के
लोगों के जीवन का
आभास होता है
कुछ के पास
आवश्यकता से अधिक
कुछ के पास
आवश्यकता से भी कम
भाग्य के
इस विचित्र न्याय की
याद दिलाता है
967-86-19-12-2012
भाग्य, जीवन

जिसे कमज़ोर समझा था



दिए को
सदा कम आंका था
जब अन्धेरा हुआ
बिजली ने धोखा दिया
दिया ही काम आया
जिससे आशा थी
वो नाकाम रहा
जिसे कमज़ोर 
समझा था
वही काम आया
ताकतवर ही
सक्षम होता है
मेरे इस सोच को
ही बदल दिया
966-85-19-12-2012
कमज़ोर,ताकतवर,

झूलती ज़िन्दगी



अलगनी पर टंगे
छोटे मोटे नए पुराने कपडे
जैसी टंग गयी है ज़िन्दगी
समय की तेज़ हवाओं में
झूल रही है ज़िन्दगी
नए पुराने लोगों के बीच
अटक गयी है ज़िन्दगी
जो मुझे भुला चुके
उन्हें भुला नहीं पा रहा हूँ
ना ही नयों को पूर्ण ह्रदय से
अपना बना पा रहा हूँ
नए पुराने के झंझावत में
उलझ गया हूँ
यादों के चक्रवात में
फंस गया हूँ
965-84-19-12-2012
यादें ज़िन्दगी,

कभी कभी जीवन में



कभी कभी जीवन में
ऐसा समय भी आता है
जब अपने भी पराये
लगते हैं
रिश्ते नाते अविश्वास के
घेरे में घिर जाते हैं
आशाओं के आकाश
निराशा के बादलों से
ढक जाते हैं
भावनाओं के बाँध
टूट जाते हैं 
केवल आसूं ही मनुष्य
का साथ निभाते हैं
965-84-19-12-2012
रिश्ते नाते,अविश्वास,विश्वास, जीवन, आशा ,निराशा

Saturday, December 15, 2012

सब कुछ समझ कर भी नासमझ बनता रहा



सब कुछ समझ कर भी
नासमझ बनता रहा
सच को झूठ
झूठ को सच कहता रहा
रिश्तों को निभाने के खातिर
दुश्मनों को दोस्त कहता रहा
काले चेहरों को
पहचान कर भी सफेद
कहता रहा
खुद को ही धोखा देता रहा
964-83-15-12-2012
रिश्ते,ज़िन्दगी ,दुश्मन,दोस्त,समझ,नासमझ,

तुम मेरी तरफ झांकती भी हो



तुम मेरी तरफ
झांकती भी हो
मुझसे मिलना भी
चाहती हो
पर तुम्हारे मन का
दरवाज़ा
बहम के ताले में बंद है
दिल के दरीचों पर
शक की सलाखें लगी हैं
चाहते हुए भी
मिल नहीं पाती हो
अगर मेरी चाहत तुम्हें
तडपाती है
तो शक की सलाखों को
तोड़ना होगा
बहम के ताले को
खोलना होगा
नहीं तो ज़िन्दगी भर
घुट घुट कर जीना होगा
दरीचे =खिड़कियाँ
963-82-15-12-2012
बहम,शक,शायरी ,

अब थक गया हूँ



अब थक गया हूँ
इमानदारी सच्चाई,
इंसानियत को ढूंढते ढूंढते
ह्रदय अतृप्त
मन व्यथित होने लगा
क्यों नहीं समझ पाता हूँ
दे दी लोगों ने जान
जिसको पाने के लिए
जो मिला नहीं
सदियों से किसी को
मुझे कैसे मिल जाएगा
खुद से पूछता हूँ
क्या तलाश बंद कर दूं
खुद ही उत्तर देता हूँ
लोग सपने भी तो देखते हैं
कुछ पूरे होते
कुछ अधूरे रह जाते
तो भी जीना तो नहीं छोड़ते
क्यों ना सपना समझ
तलाश जारी रखूँ
मिल जायेगी तो खुश
हो लूंगा
नहीं मिलेगी तो अधूरा
सपना समझ भूल जाऊंगा
हँसते हुए जीना नहीं
छोडूंगा
962-81-15-12-2012
इंसानियत,अतृप्त,सपना,तलाश,

ये कैसा वक़्त हैं दोस्तों



ये कैसा वक़्त हैं दोस्तों
कुछ दोस्त रह गए
कुछ चले गए दोस्तों
काफिले बनते रहे
काफिले 
बिगड़ते गए दोस्तों
खुल कर 
हँस भी नहीं सके
कि रोने लगे दोस्तों
हम भी कब तक रहेंगे
पता नहीं दोस्तों
हमारे जाने के बाद
रोना नहीं दोस्तों
हँसते हुए हमारे जैसे ही
दोस्तों के काफिले
बनाते रहना दोस्तों
961-80-15-12-2012
दोस्त,काफिले,वक़्त,शायरी,

प्रश्नों में उलझने की जगह



वही नभ वही धरती
वही समुद्र वही प्रकृति
फिर रात काली
दिन उजला क्यों होता है
क्यों सूर्य दिन को
चाँद रात को चमकता है
प्रश्न तो इतने हैं
सोचो जितने कम हैं
फिर क्यों इंसान
खोज में लगा रहता है
हर प्रश्न का उत्तर ढूंढता है
जिज्ञासा में निरंतर
विचलित रहता  है
कितना अच्छा हो अगर
खोज की जगह
जो भी मिला उसे जीवन में
उसका सम्मान करे
प्रश्नों में उलझने की जगह
सोच को स्वच्छ करे
केवल मानव कल्याण
के लिए कार्य करे 
960-79-15-12-2012
प्रश्न,जीवन,सोच,स्वच्छ

सर उठा कर जिया हूँ अब सर झुका कर कैसे जियूं ?



बहुत प्रयत्न किया
पर समझ नहीं पाया
कैसे लोगों को खुश करूँ ?
क्या उनकी हर बात में
हाँ में हाँ मिला लूँ
झूठ को सच कहूँ ?
या ज़माने के साथ चलूँ
मुखोटा पहन लूँ
उनकी खुशामद करूँ
झूठी प्रशंसा करूँ
पर यह तो
हो नहीं सकता
खुद के लिए
कभी झूठ नहीं बोला
उनके लिए कैसे बोलूँ ?
कई नाराज़ हो गए
पहले भी
कई और नाराज़
हो जायेंगे आगे भी
अब तक
सर उठा कर जिया हूँ
अब सर झुका कर
कैसे जियूं ?
जो ना कर सका
जीवन में अब तक
बचे हुए दिनों के लिए
कैसे करूँ ?
959-78-15-12-2012
जीवन,मुखोटा,प्रशंसा,खुशामद,सच,झूठ

जो भी हँस कर मिलता मुझसे



जो भी
हँस कर मिलता मुझसे
उस से ही मिल लेता हूँ
कुछ पल हँस लेता हूँ
सोचता नहीं हूँ
कब तक साथ हंसेगा
कब तक साथ निभाएगा
जिनसे थी आशाएं
खाई थी अनगिनत कसमें
जीवन भर साथ निभाने की
जिन्हें माना था जीवन ज्योती
वो ही जब
बिना बताये चले गए
घनघोर
अन्धेरा पीछे छोड़ गए
किसी और से क्या आशा करूँ
जो भी
दो पल हँस कर मिलता
अब उसे ही अपना
समझता हूँ
958-77-15-12-2012
मित्र,मित्रता,जीवन,साथी,

कोई जाति पूछता है ,कोई धर्म पूछता है



कोई जाति पूछता है
कोई धर्म पूछता है
कोई उम्र तो
कोई धंधा पूछता है
पूछता है
कोई नहीं पूछता
मेरा ह्रदय कैसा है
मेरा ज्ञान कितना है
इमानदार हूँ
या बेईमान हूँ
जैसा दिखता हूँ
वैसा हूँ
या बाहर कुछ अन्दर
कुछ और हूँ
मन को अच्छा लगेगा
जब कोई ये प्रश्न करेगा
निरंतर तुम इंसान हो
या इंसान के रूप में
हैवान हो
957-76-15-12-2012
जाती,धर्म,जीवन,इंसान ,हैवान

वास्तविकता की उड़ान में



वास्तविकता की उड़ान में
भाव मेरे भी बहते हैं
घाव मेरे भी रिसते हैं
अब जब बन गए हो तुम
हमराज मेरे
दर्द अवश्य कम हो जायेंगे
तराशेंगे एक दूजे को
हँसते हुए जियंगे
मिल कर हम दोनों
गीत खुशी के गायेंगे
956-75-15-12-2012
हमराज़,जीवन,खुशी,वास्तविकता

मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ



मैं तुमसे कुछ कहना
चाहता हूँ
पर कहते हुए डरता हूँ
कहते कहते रुक जाता हूँ
मन की इच्छाओं को
अपने भीतर समेट लेता हूँ
कैसे कहूँ के चक्रव्यूह में
उलझ जाता हूँ
या तो मुझे तुम पर
या मुझे खुद पर विश्वास नहीं
मैं तुम्हें,तुम मुझे ठीक से
समझ नहीं पाए
तुम भी प्रयत्न करो
मैं भी प्रयत्न करूंगा
पहले रिश्तों को सुद्रढ़ बनाएं
शक को रिश्तों से दूर हटायें
फिर तुम मुझे मैं तुम्हें
मन की बात कह पाऊंगा
ना डरूंगा ना घबराऊंगा
955-74-15-12-2012
जीवन,विश्वास,अविश्वास ,उलझन,रिश्ते

मेरे मन की सड़क में



मेरे मन की सड़क में
गलियाँ ही गलियाँ
गलियों के अन्दर भी
कई गलियाँ
असंतुष्टी की गलियाँ
इच्छाओं
आकांशाओं की गलियाँ
मन इन गलियों में
भटक रहता है
उलझा रहताहै 
बेचैन रहता है
गलियों से निकल कर
संतुष्टी की मुख्य
सड़क पर नहीं आ पाता
हालांकि मन जानता है
जब तक इन गलियों से
बाहर नहीं निकलेगा
चैन की सड़क पर नहीं
आ पायेगा
954-73-15-12-2012
जीवन,संतुष्टी,असंतुष्टी,मन,चैन,इच्छाएं,आकान्शाएं

पहले खुद ऐसा बनने का प्रयत्न करो



मैं मिलना चाहता था
किसी इमानदार,शालीन
धैर्यवान,सहनशील,दयालू
निश्छल मन के
सर्वगुण संपन्न व्यक्ति से
बरसों ढूंढता रहा पर
कोई ना कोई अवगुण
हर इंसान में मिला
सोच में डूबा बगीचे में
बैठा हुआ था
ऐसा इंसान ढूंढता रहूँ या
खोज बंद कर दूं
मुझे घंटों सोच में डूबा देख
बगीचे के चौकीदार से
रहा ना गया
मुझसे परेशानी का
कारण पूछा
कारण बताने पर
चौकीदार ने उत्तर दिया
बाबूजी पढ़ा लिखा तो नहीं हूँ
पर इतना जानता हूँ
ऐसा इंसान ढूँढने की जगह
पहले खुद ऐसा बनने का
प्रयत्न करो
इसका आधा भी बन जाओगे
तो जीवन भर दुखी नहीं रहोगे
दूसरों को भी प्रेरित करोगे
953-72-15-12-2012
जीवन,सद्गुण,अवगुण,इंसान ,सर्वगुण संपन्न 

वक़्त के साथ ज़िन्दगी ख़त्म ज़रूर होती



ना पहाड़ों की
ऊंचाई कम होती
न समंदर की
गहराई कम होती
ना जीने की इच्छा
कम होती
ना किसी की उम्मीदें
कम होती
ना यादें कम होती
मगर इंसान की उम्र
कम होती
वक़्त के साथ ज़िन्दगी
ख़त्म ज़रूर होती
952-71-15-12-2012
ज़िन्दगी,जीवन

सुबह बड़ी शिद्दत से सजता संवारता हूँ



सुबह बड़ी शिद्दत से
सजता संवारता हूँ
शाम तक बासी फूल सा
मुरझा जाता हूँ
मगर उसका दीदार नहीं होता
बनने संवारने में ज़िन्दगी
गुजारता हूँ
पर उम्मीद का दामन नहीं
छोड़ता हूँ
आईने को रोज़ तसल्ली देता हूँ
सब्र रखने की ताकीद करता हूँ
एक दिन मेरे चेहरे के साथ
एक खूबसूरत चेहरा भी
दिखाऊंगा
जब तक तो मुझे ही बर्दाश्त
करना पडेगा
आइना खामोशी से
मुझे सजने संवारने देता है
वो भी मेरी मजबूरी
समझता है
951-70-15-12-2012
मजबूरी,शायरी,चाहत,हसरत,अरमान,मोहब्बत ,ख्वाहिश