214--02-11
तुम्हें तो आदत है
रूठ जाने की
हर बात का
फ़साना बनाने की
निरंतर
बिजलियाँ गिराने की
अब तो इन्तहां करो
इब्तदा
मुस्काराने की करो
खामोशी से
बर्दाश्त करने की करो
नूर चेहरे का
क्यों बेनूर करते हो
क्यूं त्योरियां
हर लम्हा चढाते हो
क्यूं हर बात में
रूठते हो
06-02-2011
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