Friday, February 10, 2012

क्या ख़ाक बयाँ करूँ

क्या ख़ाक बयाँ करूँ
कैसे बीतता है वक़्त
इंतज़ार में
समझता है वही
जो गुजरा है उस
मुकाम से
की नहीं मोहब्बत
जिसने
कभी लगी नहीं आग
जिसके दिल में
देखे नहीं ख्वाब जिसने
रात में
वो क्या ख़ाक समझेगा
हाल-ऐ-दिल इंतज़ार में
10-02-2012
138-49-02-12

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