Tuesday, May 15, 2012

कैक्टस

अनंत काल से
कालजयी मुस्कान लिए
मरुधर में निश्चल खडा हूँ 
धूल भरी आँधियों से
अकेला लड़ रहा हूँ 
लड़ते हुए भी हरीतिमा का
आभास दे रहा हूँ
सदियों से
मुझे भस्म करने का
प्रयत्न कर रही
आग उगलते सूरज की
तपन को सह रहा हूँ
पथ से डिगाने की
हर कोशिश को
नाकाम करता रहा हूँ
स्वयं पर अडिग विश्वास
मुझे काल कवलित
होने से बचाता रहा
मेरी मुस्कान को
क्रंदन में
बदल नहीं पाया
15-05-2012
527-47-05-12

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