Monday, June 4, 2012

मैं अनपढ़ ही ठीक हूँ

मैं कभी स्कूल नहीं गया
किताब का एक अक्षर भी
कभी नहीं पढ़ा
लोगों को बोलते देखा
जो अच्छा लगा
उसका अनुसरण कर लिया
जो अच्छा नहीं लगा
उसे मष्तिष्क में आने
नहीं दिया
लोगों ने  अनपढ़
कह कर संबोधित किया
अपमानित होता रहा
खून का घूँट पी कर
किसी तरह अपना काम
चलाता रहा
अब उम्र के अंतिम
पड़ाव पर हूँ
कई बार मन में
विचार आता है
पढता लिखता तो
क्या और पा सकता था 
कहीं अनपढ़ रह कर
मैंने कुछ खोया तो नहीं
लेकिन जब
पढ़े लिखे लोगों को
असभ्य भाषा बोलते
दुर्व्यवहार करते
मान मर्यादा को
तार तार करते
रिश्तों की बली लेते
अपराध करते देखता हूँ
तो शर्म से गढ़ जाता हूँ
सोचता हूँ
उस शिक्षा का क्या लाभ
जिसमें इंसान
कुछ पैसे अधिक तो
कमा सकता है
पर इंसान सा
व्यवहार नहीं कर सकता
अपने आप से कहता हूँ
मैं अनपढ़ ही ठीक हूँ
कम से कम इंसान
बन कर तो रहता हूँ
04-06-2012
562-12-06-12

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