Sunday, November 6, 2011

टूटे हुए दिल को क्यूं और तोड़ते हो तुम?


चेहरे को देख
हाल-ऐ-दिल
जान लेते हो तुम
फिर क्यूं 
सताते हो तुम?
देख कर क्यूं
अनदेखा करते हो तुम?
ज़ख्मों में निरंतर नश्तर
 चुभाते हो तुम
टूटे हुए दिल को
क्यूं और तोड़ते हो तुम?
माना कि जुदा हो गए
हमसे तुम
साथ गुजारे लम्हों के
खातिर ही सही
कम से कम नज़रें तो
मिला लिया करो
हमसे तुम
06-11-2011
1746-15-11-11

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