Saturday, December 3, 2011

मेरे कमरे में लगा आईना


वर्षों से मेरे कमरे में
लगा आईना 
बड़ा ही पुरातन वादी है
बदलने का नाम ही नहीं लेता
निरंतर मुझे वैसे ही दिखाता
जैसा में दिखता हूँ
सुबह आधी नींद से उठ कर
बाल ठीक करने के लिए 
आइना  देखता हूँ
तो बिखरे हुए बाल
अलसाई आँखें
चेहरे पर नींद की खुमारी
साफ़ दिखा देता है
आधी नींद  से सो कर उठा हूँ
कभी बन ठन कर
आईने  में झांकता हूँ
तो  चिल्ला कर कह देता है
कहीं जाने की तैय्यारी में हूँ
मैं सोचता हूँ
क्यों ये बिखरे बाल और
चेहरे की झुर्रियों को
नहीं छुपाता ?
बड़ा ही रुढीवादी है
इक्कीसवीं सदी में भी
नहीं बदला
शायद समय के साथ
चलना नहीं चाहता
चेहरे पर चेहरा नहीं
लगाता
सच कह देता है
वर्षों से मेरे कमरे में
लगा आइना 
03-12-2011
1836-101-11-11

1 comment:

sada said...

बहुत ही सूक्ष्‍म विश्‍लेषण करता है ये आईना
आपके शब्‍दों की तरह ...

बहुत ही अच्‍छा लिखते हैं आप ... शुभकामनाएं ।