वर्षों से मेरे कमरे में
लगा आईना
बड़ा ही पुरातन वादी है
बदलने का नाम ही नहीं लेता
निरंतर मुझे वैसे ही दिखाता
जैसा में दिखता हूँ
सुबह आधी नींद से उठ कर
बाल ठीक करने के लिए
आइना देखता हूँ
तो बिखरे हुए बाल
अलसाई आँखें
चेहरे पर नींद की खुमारी
साफ़ दिखा देता है
आधी नींद से सो कर उठा हूँ
कभी बन ठन कर
आईने में झांकता हूँ
तो चिल्ला कर कह देता है
कहीं जाने की तैय्यारी में हूँ
मैं सोचता हूँ
क्यों ये बिखरे बाल और
चेहरे की झुर्रियों को
नहीं छुपाता ?
बड़ा ही रुढीवादी है
इक्कीसवीं सदी में भी
नहीं बदला
शायद समय के साथ
चलना नहीं चाहता
चेहरे पर चेहरा नहीं
लगाता
सच कह देता है
वर्षों से मेरे कमरे में
लगा आइना
03-12-2011
1836-101-11-11
1 comment:
बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण करता है ये आईना
आपके शब्दों की तरह ...
बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप ... शुभकामनाएं ।
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