Sunday, December 4, 2011

मेरा जूता एक दिन बोला मुझ से


मेरा जूता
एक दिन बोला मुझ से
कब तक घिसोगे मुझको
मेरी प्रार्थना सुन लो
मेरे कष्ट थोड़े कम कर दो
सहने के लिए एक
साथी दे दो
जूते की एक और जोड़ी
खरीद लो
चलते चलते थक गया हूँ
कीचड,गोबर में
सनते,सनते उकता गया हूँ
धूल,मिट्टी से भरता हूँ
उफ़ करे बिना
पथरीले सफ़र पर
चलता हूँ
सर्दी,गर्मी,बरसात में
निरंतर मुझे  घसीटते हो
कभी क्रोध दिखाने के लिए
नेताओं पर उछालते हो
कोई झगडा करे तो
निकाल कर मारते हो
मुझे खुश करने के लिए
थोड़ी सी पोलिश लगाते हो
बदबूदार
मोज़े सूंघते सूंघते
आत्म ह्त्या का मन
करता
मेरी छाती जैसा तला
गम में फट ना जाए
उससे पहले थोड़ा सा
रहम कर दो
जूते की एक और जोड़ी
खरीद लो
सहने के लिए एक
साथी दे दो
04-12-2011
1840-08-12

1 comment:

Urmi said...

हाहाहाहा! सही में अब तो एक नया जोड़ा जूता खरीद ही लीजिये! ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने जूते को लेकर! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!