Saturday, January 21, 2012

“फिर कभी”


मेरे परम मित्र
दूसरे शहर में रहते हैं
जीवन के विषयों पर
हम निरंतर
आपस में चर्चा करते हैं
जब चर्चा
गूढ़ होने लगती
तो फ़ौरन कह देते
इसमें बहुत समय लगेगा
इस प़र “फिर कभी”
विस्तार से चर्चा करेंगे
मैं मन मसोस कर
रह जाता
धीरे धीरे विषयों की
सूची लम्बी होने लगी
मैं उन्हें याद दिलाता
तो कह देते
छोडो भी, 
आज तो जी भर कर 
बात कर लेने दो
“फिर कभी” मिलेंगे
जब ऐसे गहरे विषय पर
विस्तार से चर्चा करेंगे
सिलसिला चलता रहा
चर्चाओं का दौर चलता रहा
उनका “फिर कभी” कहना
भी चलता रहा
पर किसी विषय पर
चर्चा पूरी नहीं हो सकी
आज मैंने उनकी
“फिर कभी” कहने की
आदत छुडाने के लिए
उनसे कह दिया
आज चर्चा पूरी करो
या “फिर कभी” बात
मत करो
तो वो सहजता और
भोलेपन से बोले
कैसी बात करते हो,
तुम तो
ह्रदय के बहुत अच्छे हो
तुम मुझसे बात करना
 बंद कर ही नहीं सकते
हमारे तो मन भी
मिलते हैं
क्रोध “फिर कभी”
बाद में कर लेना
आज तो
प्यार से दो बात कर लो
मैं उनकी
बात टाल नहीं सका
प्रसन्नता से
 बात चीत करने लगा
आदत छुडाने के 
विषय में बात आयी
तो फिर कहने लगे
लंबा विषय है
“फिर कभी” विस्तार से
चर्चा करेंगे
मैं  चुपचाप सुनता रहा,
फिर मुस्कराकर
रह गया
21-01-2012
71-71-01-12