निरंतर कुछ सोचता रहे,कुछ करता रहे,कलम के जरिए बात अपने कहता रहे....
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ,किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का कोई प्रयोजन नहीं है,फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
"निरंतर" की कलम से.....: धूप बोली चांदनी से: धूप बोली चांदनी से सदियों पुराने रिवाज़ से अब मुक्त हो जाओ तुम समझाओ चाँद को मैं समझाऊंगी सूरज को कभी मैं रात को छाऊँ कभी तु...
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