333—1-03-11
बहुत
शिद्दत से निकाला
दिल से मुझे
मुड़ कर भी ना देखा मुझे
चेहरे पर मलाल नहीं कोई
ना शिकवा ना गिला कोई
खेल मोहब्बत का खेलते
शौक अपना पूरा करते
चाहने वालों से
सुलूक ऐसा करते
एक छोड़ते,दूसरा पकड़ते
दिल निरंतर यारों का तोड़ते
बहुत हमदर्दी मुझे उनसे
मोहब्बत की कद्र ना जानते
अपनी किस्मत
अपने हाथों से लिखते
रास्ता दोजख का चुनते
01-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
1 comment:
शिवकुमार ( शिवा) ने आपकी पोस्ट " बहुत शिद्दत से निकाला दिल से मुझे " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बहुत सुंदर कविता .
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