रोज़ उस
सड़क से गुजरता
दोनों तरफ पेड़ों को देखता
रंग बिरंगे फूलों को
दोनों तरफ पेड़ों को देखता
रंग बिरंगे फूलों को
निहारता
उनकी महक से रास्ता
उनकी महक से रास्ता
महकता
पक्षियों का कलरव
पक्षियों का कलरव
संगीत सा लगता
रास्ता आनंद से कटता
मन निरंतर उस सड़क पर
चलने का करता
कभी समाप्त ना हो
दिल चाहता
कब समाप्त होता
पता ना चलता
अब समय साथ सब
बदल गया
सारा इलाका कंक्रीट का
जंगल हो गया
रास्ता छोटा हो गया
दोनों तरफ मकानों से
ढक गया
अतिक्रमण से भर गया
गाड़ियों से
यातायात बढ़ गया
पेड़ कट गए
संगीत शोर में बदल गया
पक्षी उड़ गए
प्रदूषण से
जीवन मुक्त हो गए
इक्के दुक्के पक्षी की
आवाज़ आती
बदलाव पर क्रंदन सी
लगती
सड़क पर चलना कठिन
हो गया
रास्ता मुश्किल से कटता
कब समाप्त होगा
निरंतर मन में सवाल आता
परमात्मा से रोज़ प्रार्थना करता
बीता समय लौटा दे
मनुष्य को सदबुद्धी दे दे
02-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
3 comments:
उम्दा रचना...
ब्लॉगर saurabh dubey ने कहा…
बहुत अच्छा रचना
४ मार्च २०११ ६:११ अपराह्न
ब्लॉगर हरीश सिंह ने कहा…
अच्छी रचना, आभार.
४ मार्च २०११ ११:३३ पूर्वाह्न
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