342—12-03-11
हां कर के
ना करते हो तुम
वादा कर के मुकरते
हो तुम
हंसा कर,रुलाते हो तुम
ख़्वाब ज़न्नत का दिखा
नज़ारा दोजख का
दिखाते हो तुम
दिल का कभी सौदा
ना किया
क्यूं फिर सताते हो तुम
वफ़ा के नाम
पर जफ़ा ना किया
क्यूं फिर सितम ढाते
हो तुम
सिला जो भी दो
निरंतर मंजूर करते हैं हम
क्या करें
हमारी कमजोरी हो तुम
दिल से
तुम्हें चाहते हैं हम
03—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
1 comment:
क्षितिजा .... ने आपकी पोस्ट " हां कर के ना करते हो तुम " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बहुत बढ़िया राजेंद्र जी ...
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