348—18-03-11
ना मैं कान से बहरा हूँ
ना मैं आँख का अंधा हूँ
मुझे सब सुनायी देता
सब दिखाई देता
मुल्क में बढ़ रही
बारूद की बदबू भी सूंघता हूँ
धमाकों की आवाज़ निरंतर
सुनता हूँ
भाई को भाई मार रहा
रोज़ देखता हूँ
जो बहरे को सुनायी दे
अंधे को दिखाई दे
वो मौत का मंजर
क्यों हुक्मरानों को दिखाई
नहीं देता
धमाकों का शोर उनके कानों में
सुनायी नहीं देता
कब उनकी आँख से किर किर
निकलेगी
कब कान को मैल से निजात
मिलेगी
निरंतर प्रार्थना परमात्मा से
करता हूँ
उन्हें नए कान नयी आँखें दे दे
बारूद सूंघने की शक्ती दे दे
मुल्क के बाशिंदों को
सुकून की ज़िन्दगी दे दे
04—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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