Thursday, March 3, 2011

हवा में रवानी,मौसम में बहारें फिर से लाओ


347—17-03-11
ज़मीन हिंद की
किसी इन्द्रधनुष से
कम नहीं
सतरंगी सिकाफत
किस मुल्क से ज्यादा नहीं
हवा में खुशबू
सारे जहां से ज्यादा यहाँ
हर मुल्क से ज्यादा
त्योंहार यहाँ 
मजहबों का संगम यहाँ
नफासत से भरी बोली 
यहाँ
खुदगर्जों के जहन में कीड़े
कुलबुलाने लगे
बीज नफरत के मुल्क में
उगाने लगे
उखाड़ फैंकों 
नफरत के दीवानों को
निरंतर ख़त्म करो उनके
अरमानों को
हिंद की ज़मीं को
पुराने मुकाम पर लाओ
भाई-चारे से रहो 
और रहना सिखाओ
हवा में रवानी
 मौसम में बहारें, 
फिर से लाओ
03—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
 सिकाफत =Culture

1 comment:

अख़्तर खान 'अकेला' said...

अख़्तर खान 'अकेला' ने आपकी पोस्ट " हवा में रवानी,मौसम में बहारें फिर से लाओ " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

अख़्तर खान 'अकेला' Says

jo aapne khaa vhi krne ki koshis kr rhe hem hmaare jmaal saahb inshaa allaah kaamyaabi jld milegi . akhtar khan akela kota rajsthan
March 4, 2011 7:48 AM