335—1-03-11
खुद के
अन्दर ही रहते हो
अपने तरीके से सोचते हो
कभी खुद के बाहर तो
निकलो
ज़माने को बिना पैमाने
तो देखो
खुद को ही समझा
अब तक
ज़माने को समझ कर
तो देखो
दुनिया प्यार से लबालब
कभी प्यार कर के
तो देखो
निरंतर लोगों को शक
से देखा
कभी दिल खोल कर
तो देखो
दुनिया में सिर्फ अन्धेरा
देखा
कभी मोहब्बत का उजाला
तो देखो
01-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
5 comments:
वीना ने आपकी पोस्ट " दुनिया में सिर्फ अन्धेरा देखा,कभी मोहब्बत का उजाला... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
दुनिया में सिर्फ अन्धेरा
देखा
कभी मोहब्बत का उजाला
तो देखो
बिल्कुल जी इस दुनिया में प्यार भी है.....
बस देखने के लिए वो आंखें चाहिए...
JAGDISH BALI ने आपकी पोस्ट " दुनिया में सिर्फ अन्धेरा देखा,कभी मोहब्बत का उजाला... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
एक अच्छा संदेश देती पंक्तियां !
क्षितिजा .... ने आपकी पोस्ट " दुनिया में सिर्फ अन्धेरा देखा,कभी मोहब्बत का उजाला... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
क्या करें राजेंद्र जी ... इंसान मजबूर है ऐसा सोचने करने के लिए ... :(
Harish singh, Mithilesh dubey ने कहा…
आपकी कविता पढ़कर मैं आपके शब्दों में छुपे भावो को महसूस कर रहा हूँ,,,, बहुत सुन्दर रचना ... आभार......
१ मार्च २०११ ११:३७ अपराह्न
शिखा कौशिक ने कहा…
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
१ मार्च २०११ ४:२४ अपराह्न
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