Thursday, March 8, 2012

घ्रणा और द्वेष कहाँ से आता है



शहर में साम्प्रादायिक
दंगों के बाद
आज कर्फ्यू का तीसरा
दिन था
खाने को घर में दाना नहीं
बेचने के लिए आढ़तिए से
जो सब्जी खरीदी थी
पड़े पड़े खराब हो गयी 
पैसे पहले ही खत्म हो चुके थे
पिछले पूरे हफ्ते बीमार
रही थी
कल ही तो हफ्ते भर बाद
पहली बार सब्जी बेचने
फेरी पर निकली थी
कर्फ्यू खुलेगा तब भी
ना तो कुछ
बेचने के लिए बचेगा
ना ही कुछ
खरीदने के लिए बचा है
बुढिया असमंजस में
सोचने लगी
क्यों धर्म और सम्प्रदाय
के नाम पर
लोग एक दूसरे को मारते हैं
उसने तो कभी नहीं सोचा
सब्जी किसके खेत की है
उसे तो ये भी नहीं पता
उससे सब्जी
मुसलमान खरीदता है
या हिन्दू
वही सब्जी दोनों के
घर में पकायी  जाती
दोनों ही उसको खाते हैं ,
फिर मन में
घ्रणा और द्वेष कहाँ से
आता है
सोचते सोचते परमात्मा से
प्रार्थना करने लगी,
सबको सदबुद्धी दे
इंसान को इंसान
समझना सिखाये
प्रार्थना करते करते
उसकी आँख लग गयी
भूखे पेट ही नींद की
गोद में समा गयी
08-03-2012
323-57-03-12

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