निरंतर कुछ सोचता रहे,कुछ करता रहे,कलम के जरिए बात अपने कहता रहे....
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ,किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का कोई प्रयोजन नहीं है,फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो: अब तक तो इर्ष्या द्वेष के गाँव में जात पांत के कसबे धर्म के नगर में मन के राक्षसी राष्ट्र में जी लिए अब मन की खिड़की ह्रदय...
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