338—8-03-11
खुद तो मिटे
हमें भी मिटा गए
खुद ज़न्नत नशीं हुए,
हमें जीते जी मार गए
खुद दर्द से निजात
पा गए
दर्द हमारे बढ़ा गए
खुद खामोश हुए
हमें तूफानों में छोड़ गए
इंतज़ार निरंतर
ज़न्नत में करते होंगे
मिलने को बेताब होंगे
बुलाने के सारे इंतजाम
कर गए
मोहब्बत का दस्तूर
निभा गए
02-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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