अकेला चला था
ज़िन्दगी के सफ़र में
लोग मिलते रहे रास्ते में
काफिला बनता गया
हकीकत से बेखबर था
सोचा था काफिला चलेगा
मंजिल पर पहुँचने तक
काफिला बिखरता गया
हर शख्श साथ छोड़ता गया
जहाँ से चला था
फिर वहीँ पहुँच गया
अकेला चलना शुरू किया था
आज फिर अकेला रह गया
ज़िन्दगी के सफ़र में
लोग मिलते रहे रास्ते में
काफिला बनता गया
हकीकत से बेखबर था
सोचा था काफिला चलेगा
मंजिल पर पहुँचने तक
काफिला बिखरता गया
हर शख्श साथ छोड़ता गया
जहाँ से चला था
फिर वहीँ पहुँच गया
अकेला चलना शुरू किया था
आज फिर अकेला रह गया
21-77-14-02-2013
ज़िन्दगी, काफिला,
अकेला
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
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