इंसान से बड़े
इंसान के साए हो गए हैं
नाम की चाहत में
अहम् के दास बन गए हैं
होड़ के संसार में
इंसानियत भूल गए हैं
अपनों से पराये हो गए हैं
इंसान कम
इंसान के पुतले रह गए हैं
भ्रम में जी रहे हैं
इंसान के साए हो गए हैं
नाम की चाहत में
अहम् के दास बन गए हैं
होड़ के संसार में
इंसानियत भूल गए हैं
अपनों से पराये हो गए हैं
इंसान कम
इंसान के पुतले रह गए हैं
भ्रम में जी रहे हैं
09-65-05-02-2013
इंसान ,इंसानियत,जीवन,चाहत
डा.राजेंद्र
तेला ,निरंतर
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