सूरज के
चढ़ने के साथ
आशाएं भी चढ़ने
लगती
चेहरे की उदासी
लुप्त होने के डर से
घबराने लगती
मन के दरवाज़े पर
हँसी की आहट
सुनायी पड़ने लगती
शाम होते होते
उदासी फिर से
चहकने लगती
सूर्य रश्मियाँ
क्षितिज की गोद में
छुप जाती
एक बार फिर
आशाएं
मुंह चुरा लेती
चढ़ने के साथ
आशाएं भी चढ़ने
लगती
चेहरे की उदासी
लुप्त होने के डर से
घबराने लगती
मन के दरवाज़े पर
हँसी की आहट
सुनायी पड़ने लगती
शाम होते होते
उदासी फिर से
चहकने लगती
सूर्य रश्मियाँ
क्षितिज की गोद में
छुप जाती
एक बार फिर
आशाएं
मुंह चुरा लेती
13-69-06-02-2013
उदासी, आशाएं
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
No comments:
Post a Comment