Friday, April 27, 2012

धरोहर



वो चार आने का सिक्का
उसने सम्हाल कर रखा है
जो माँ ने मरने से
एक दिन पहले
खर्चने के लिए दिया था
बड़े उल्लास से सिक्का लेकर
मेले में पहुंचा था
पहली बार अकेले
किसी मेले में गया था ,
घंटों घूमता रहा पर
तय नहीं कर सका
कैसे खर्च करे,कुछ खाए
या कुछ खरीद कर
घर ले जाए ,
मन मचलता
फिर ध्यान आता ,
कहीं ऐसा ना हो,
कुछ अच्छा छूट जाए
इसी ऊहापोह में घंटों
घूमता रहा
चार आने का सिक्का भी
उससे खर्च नहीं हो सका था 
घर पहुँच माँ ने पूछा ,
सिक्के का क्या किया ?
उसने झूठ कह दिया
चाट पकोड़ी में खर्च
कर दिया
अगले दिन ही
माँ की तबियत खराब
हो गयी 
फिर माँ कभी ठीक
नहीं हुयी
सदा के लिए
संसार से चली गयी
कई दिन तक उसे माँ से
झूठ बोलने का,
और चार आने
खर्च नहीं कर पाने का
मलाल रहा
पर अब बुढापा आ गया
जब भी माँ की याद आती
तिजोरी से
सिक्का निकाल कर
घंटों उसे देखता रहता
शायद सिक्के में
उसे माँ की सूरत
दिखती है
सोच कर खुशी होती है
कितना अच्छा हुआ
जो उस दिन उसने
चार आने खर्च नहीं किये
वो चार आने का सिक्का
अब उसके लिए 
माँ की सबसे कीमती 
धरोहर है

27-04-2012
470-51-04-12

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