Monday, April 30, 2012

हास्य कविता-उसकी जुस्तजू में उम्र गुजारते रहे



उसकी जुस्तजू में उम्र
गुजारते रहे
आसमान से
चाँद तारे तोड़ते रहे
ना वो मिली
ना दिल को राहत मिली
होश में आये तो शादी की
उम्र निकल चुकी थी
चेहरे पर झुर्रियों की बहार
आँखों में मोटा चश्मा
कानों में सुनने की मशीन
कमर झुक चुकी थी
मन फिर भी माना नहीं
एक मोहतरमा से
मोहब्बत का इज़हार
कर दिया
आव देखा ना ताव
सर के बचे खुचे बाल
पकड़ कर
मोहतरमा ने गाल पर
ज़न्नाटेदार थप्पड़
जड़ दिया
मुंह में लगे नकली
दांतों को
निकाल कर बाहर कर दिया
बचा खुचा सच भी बयान
कर दिया
बुढापे में प्यार का बुखार
उतार दिया 
27-04-2012
471-52-04-12

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