Monday, April 2, 2012

ये कैसी चाहत है ?



तुम कहते हो
हमें बहुत चाहते हो
हर पल याद करते हो
ये कैसी चाहत है ?
हमारे चेहरे पर दर्द की
लकीरें
तुम ठहाके लगा रहे हो
हम चल भी नहीं  सकते
तुम दौड़ लगाते हो
क्यों खामखाँ
दोस्ती का नाम बदनाम
करते हो
इससे तो बेहतर था
तुम खुले आम हमें
दुश्मन कहते
दिल में  झूठ बोलने का
बोझ तो नहीं ढोते
अपने ज़मीर से तो
इमानदारी करते
02-04-2012
424-04-04-12

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