Wednesday, April 18, 2012

वो कहीं दूर रहती है


वो कहीं दूर रहती है
उसे भी वही
चाँद दिखता होगा
जो मुझे दिखता है
वो भी सूरज की उसी
धूप में नाहती होगी
जिसमें मैं नाहता हूँ
फर्क इतना ही है
उसकी नाज़ुक चमड़ी
चांदनी में भी जलती हैं
मुझ पर तेज़ धूप का भी
कोई असर नहीं होता
तुम्ही बताओ वो
मेरी कैसे हो सकती है ?
18-04-2012
457-38-04-12

No comments: