Thursday, April 19, 2012

तुम्हें रोज़ याद कर लेता हूँ


वही चढ़ाता है फूल
जलाता है बाती
भगवान् के मंदिर में
करता है दुआएं
माँगता है कृपा उसकी
किसे दे किसे ना दे
सब उसकी
इच्छा पर निर्भर
भक्त का काम
निरंतर उसका नमन
यही सोच तुम्हें रोज़
याद कर लेता हूँ
कब होगी
तुम्हारी कृपा मुझ पर
इंतज़ार में रोज़
तुम्हें ख़त लिख देता हूँ
जिस दिन
मिल जाएगा उत्तर
तुमसे पा लिया प्रसाद
उस दिन तुम्हारी
कृपा समझ  लूंगा
19-04-2012
462-43-04-12

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