Tuesday, April 17, 2012

दर्द को बुलावा ना दो


ज़ख्मों को कुरेद कर
दर्द को बुलावा ना दो
मुस्काराते चेहरों को
दिल का चारागार ना
समझो
वो कातिल-ऐ-दिल होते हैं
पहले भी खाई है चोट तुमने
कई बार देखे हैं
उनकी बेवफायी के जलवे
अब छोड़ दो
मोहब्बत का इरादा
ज़ख्मों को फिर हरा
ना होने दो
इस बार जो फँस गए
उनके जाल में
वफ़ा की उम्मीद में
कहीं जाँ से हाथ ना
धो बैठो
17-04-2012
452-32-04-12

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