Sunday, June 12, 2011

स्त्री बिना पुरुष का अस्तित्व अर्थ हीन होता

आकाश से उतर
चाँद खिड़की के रास्ते
मेरे कमरे में आया
चुपके से मेरे पास
पलंग पर बैठ गया
हौले से मुझे उठाया
आँख खुली
कमरे में अन्धेरा था
पहली नज़र में
चाँद को नहीं पहचाना
गौर से देखा चाँद था
आश्चर्य में पड़ गया
चाँद आज
बिना चांदनी के था
मैंने चाँद से कारण पूछा
चाँद ने जवाब दिया
मैं निरंतर गलती पर था
समझता था
चांदनी का अस्तित्व
मेरे कारण है
उसे कभी सम्मान
नहीं दिया
प्रेयसी बिना प्रेमी
जीवन बिना धरती
स्त्री बिना
पुरुष का अस्तित्व
अर्थ हीन होता
अब समझ गया
चांदनी पूरक मेरी
उसके बिना मुझे भी
कोई नहीं पहचानता
मेरा अस्तित्व भी 

अधूरा है
12-06-2011
1036-63-06-11

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