हंसमुखजी ने
विवाह की पचासवीं
वर्षगाँठ मनायी
लोगों ने उनकी हिम्मत पर
आश्चर्य से दांतों तले
ऊंगली दबायी
आश्चर्य से दांतों तले
ऊंगली दबायी
धीरे से मन की जिज्ञासा
हंस मुखजी को बतायी
कैसे सफलता पायी ?
कैसे इतने साल निभायी ?
हमें भी बताओ
मन की जिज्ञासा मिटाओ
नयी पीढी को भी
रास्ता दिखाओ
हंसमुखजी हँसे फिर बोले
बहुत आसानी से निभायी
वो हंसी, मैं हंसा
वो रोयी,मैं रोया
उसने धोया,मैं धुला
उसने लगायी,मैंने खायी
उसने कहा, मैंने सुना
वो रूठी, मैंने मनाया
वो आगे आगे,मैं पीछे पीछे
ना क्रोध किया,
ना विरोध किया
जो माँगा वो दिया
हर स्थिती को
सहर्ष स्वीकार किया
निरंतर
उसकी हाँ में हाँ मिलायी
तब जा कर पचासवी
वर्षगाँठ मनायी
अब आदत हो गयी
इस लिए सौंवी भी
मनायी जायेगी
20-06-2011
1077-104-06-11
आदरणीय श्री मोहन लालजी जैन को
(क्षमा सहित) ,
शुभकामनाओं के साथ सप्रेम भेंट
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