Wednesday, June 29, 2011

शिकारी को शिकार मिल गया

भँवरा इतराता हुआ
बगीचे में आया
खूबसूरत फूलों को
खिले देख मुस्कराया
फूलों को
 कुटिल निगाहों से
देखने लगा
अपना शिकार ढूँढने लगा
उधर फूल सोच रहे थे
भँवरा उनकी ख़ूबसूरती देख
 बाग़ में आया
फूल  घमंड में  इतराने लगे ,
अच्छे बुरे का ख्याल
भूल गए
भँवरे का निमंत्रण
ठुकरा ना सके
शिकारी को शिकार
मिल गया
भोलेपन में एक फूल
भँवरे के जाल में 
फँस गया
अपनी अस्मत लुटा बैठा
ख़ूबसूरती के घमंड में
निरंतर रोता रह गया
29-06-2011
1110-137-06-11

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