पैर उसके
धूल से सने हुए
बिवाइयां फटी हुयी
हाथ मिट्टी में
लथ पथ
लम्बे नाखून
मिट्टी से भरे
सुबह से शाम
बगीचे में
काम करता था
सबके लिए खूबसूरत
फूल उगाता
किसी पौधे को
सूखने ना देता
खुद कांटो में
ज़िन्दगी जीता
बदबूदार खोली में
रहता
कभी,कभी
भूखा रह जाता
मगर बगीचे को
निरंतर महकाता
सुन्दर बगीचे का
माली था
बगीचे को हरा
भरा रखना
उसका मकसद था
घर परिवार का
ध्यान ना था
ध्यान ना था
वो कर्म को पूजा
मानता
उसके लिए बगीचा
ही सब कुछ था
दूसरों की खुशी के लिए
जीता था
ही सब कुछ था
दूसरों की खुशी के लिए
जीता था
28-06-2011
1107-134-06-11
No comments:
Post a Comment