धूप वही ,बारिश वही
गर्मी वही,पानी वही
हवा में वो खुशबू नहीं
ये ज़मीन नहीं मेरी
ये धरती विदेशी
मुल्क की याद सताती
अपनों की याद आती
रातों की नींद उडाती
मेरे गाँव की मिट्टी सी
सुगंध नहीं होती
शक्लें जानी पहचानी
मगर अपरिचित रहती
कोई जुबां चाचा,
भैया नहीं कहती
देश के नाम पर
आँखें नम होती
निरंतर झूठी मुस्कान
चिपकी रहती
बातें बहुत कर ली
फिर भी हकीकत नहीं
बता पता
मेरा ज़मीर मुझे
कचोट रहा
इस लिए बता
रहा हूँ
रहा हूँ
विदेश में रुका
हुआ हूँ
15-06-2011
1048-75-06-11
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