मैंने
एक कविता लिखी
प्रशंसा बहुत हुयी
बहुत खुशी मिली
उचित थी,अनुचित थी
या खुश करने की
चाल थी
पूर्णतया पता ना चली
अपने को बड़ा भारी
कवि समझने लगा
फिर मुलाक़ात
हंसमुखजी से हुयी
उन्होंने कविता पढी
मैंने सोचा अब प्रशंसा
सुनने को मिलेगी
प्रशंसा नहीं मिली
नसीहत अवश्य मिली
प्रयास प्रशंसनीय है
प्रशंसा को सर मत
चढाओ ,
अच्छे कवियों को पढो
मंथन और
आत्मचिंतन करो
बेहतर लिखने की
कोशिश करो
बात समझ आ गयी
अब खुद से बात
करता हूँ ,
अच्छा,बुरा जानने की
कोशिश करता हूँ
अच्छे पर खुश होता हूँ
बुरे पर पर विचार
करता हूँ
मित्रों,ज्ञानियों से
पूछता हूँ
कैसे दूर करूँ ?
सोचता हूँ
निरंतर इसी प्रयास में
रहता हूँ
29-06-2011
1115-141-06-11
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