निरंतर कुछ सोचता रहे,कुछ करता रहे,कलम के जरिए बात अपने कहता रहे....
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ,किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का कोई प्रयोजन नहीं है,फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
"निरंतर" की कलम से.....: कहीं बम फटे: कहीं बम फटे मैं शक से देखा जाता हूँ खाकी निकर पहन कर निकलता हूँ तो काफिर कहलाता हूँ कहीं मस्जिद में कुछ फेंका जाता है मु...
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