निरंतर कुछ सोचता रहे,कुछ करता रहे,कलम के जरिए बात अपने कहता रहे....
(सर्वाधिकार सुरक्षित) ,किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का कोई प्रयोजन नहीं है,फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से: कोई किश्ती किनारे नहीं लगी फिर भी किनारा आसूदा हो गया या तो इस किनारे से कोई किश्ती कभी पानी में उतरी ही नहीं उतरी तो भी ...
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