Monday, October 31, 2011

काश वो खुद आते


वो निरंतर
पैगाम भेजते हैं
दिल में फूल खिलते हैं
लिफ़ाफ़े पर
उनके नाज़ुक हाथों के
निशाँ
दिल को छूते हैं
ख़त के
एक एक लफ्ज़ में
उनकी खुशबू ज़ज्ब
होती है
कागज़ में उनका
अक्स नज़र आता है
उनकी यादें ताज़ा
होती हैं
फिर भी उनकी कमी
खलती है
मेरी हसरतें
चिल्ला चिल्ला कर
कहती हैं
काश वो खुद आते
तो बात
कुछ और होती
30-10-2011
1727-134-10-11

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