Saturday, October 22, 2011

बड़ी ज़ालिम होती ये निगाहें


बड़ी ज़ालिम होती
ये निगाहें
इन निगाहों का
क्या कीजिये
कहीं ठहरती नहीं
जो भी दिल को भाता
तस्वीर दिल में
उतारती
उसकी तलाश में
भटकतीरहती
रात रात
भर सोने ना देती
निरंतर
 ख्वाब देखती रहती
तड़प इनकी
कभी कम नहीं होती
बड़ी ज़ालिम होती
ये निगाहें
इन निगाहों का
क्या कीजिये 
22-10-2011
1693-100-10-11

1 comment:

Srikant Chitrao said...

बहोत ही सरलता से बड़ी बात कहती है आपकी कविता | बहोत-बहोत बधाई और दिवाली की शुभकामनाएँ |धन्यवाद |