Saturday, October 15, 2011

शोख अंदाज़ अब मायूसी में बदल गया


ज़ख्म खाना
रोज़ का काम हो गया
भरी दोपहर अन्धेरा
छा गया
रात दिन में फर्क
करना  
मुश्किल हो गया
सहना आदत में
शुमार हो गया
सब्र अब मरहम
बन गया
निरंतर बेबसी में
जीना
मजबूरी बन गया
शोख अंदाज़
अब मायूसी में
बदल गया
15-10-2011
1657-65-10-11

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