Monday, October 3, 2011

गरीबी का मूल्य

नन्हे
हाथों में नए कंगन,
कानों में झुमके
गले में मोतियों की
माला पहने
नयी चुनडी ओढ़े
उछलते कूदते
नन्ही बालिका इतरा
रही थी
घर आये मेहमानों को
बड़े गर्व से अपने नए
वस्त्राभूषण दिखा
रही थी
उसे पता नहीं था
आज उसके बचपन का
अंतिम दिन था
कल उसका विवाह था
उसके कौमार्य को
उसके पिता ने
चंद रुपयों के लिए
एक अधेड़ शराबी को
बेच दिया था
अब जीवन भर उसे
रोना था
गरीबी का नतीजा
सहना था
चूल्हे,चौके की आग में
निरंतर जलना था
घुट घुट कर मरना था
गरीबी का मूल्य
चुकाना था
03-10-2011
1599-08-10-11

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