Wednesday, July 31, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कौन बाँध सका है

"निरंतर" की कलम से.....: कौन बाँध सका है: कौन बाँध सका है हवाओं को कौन बाँध सका है उजाले को नहीं बाँध सका कोई इच्छाओं को जिसने भी बांधा बांधा भावनाओं को तड़पाया ह...

"निरंतर" की कलम से.....: पहले धरती को जी भर के देख लूं

"निरंतर" की कलम से.....: पहले धरती को जी भर के देख लूं: ना अम्बर की ऊंचाई नापना चाहता हूँ ना समुद्र की गहराई जानना चाहता हूँ पहले धरती को जी भर के देख लूं वृक्षों से जी भर के बात...

Tuesday, July 30, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मन व्यथा मुक्त हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: मन व्यथा मुक्त हो तो: वह दिन अच्छा नहीं लगता जिसमें सूरज तो चमकता है मगर रात का आभास होता है वह रात भी अच्छी लगती है जिसके घनघोर अँधेरे में भी उजाले का आ...

"निरंतर" की कलम से.....: परम्पराओं का संसार

"निरंतर" की कलम से.....: परम्पराओं का संसार: काल बदला समय बदला नहीं बदला तो परम्पराओं का संसार नहीं बदला सदियों से जंजीरों में जकड़ा मान्यताओं का ताला नहीं खुला जीना कितना भी द...

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन सत्य

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन सत्य: मन की भावनाएं हो ह्रदय का प्रेम हो पेट में रोटी नहीं तो सिवाय भूख मिटाने के कुछ याद नहीं आता जीवन भावनाओं और प्रेम से अधिक आवश...

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से: कोई किश्ती किनारे नहीं लगी फिर भी किनारा खुद में मस्त था अहम् से भरा था किसी से कोई मतलब ना था इस किनारे से कोई किश्ती कभ...

Saturday, July 27, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: गुलमोहर

"निरंतर" की कलम से.....: गुलमोहर: मेरे घर  के बाहर लगा गुलमोहर का पेड मेरे जीवन का मूक साथी है अटूट रिश्ते का दर्पण है मेरे दादाजी ने बचपन में नित्य पानी से सींचन...

"निरंतर" की कलम से.....: तेरे प्रेम में इतना डूबा हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: तेरे प्रेम में इतना डूबा हूँ: तेरे प्रेम में इतना डूबा हूँ चाहे  दिन में देखूं रात में देखूं खुली आँखों से देखूं बंद आँखों से देखूं सपने में देखूं साक्षात द...

"निरंतर" की कलम से.....: कहीं बम फटे

"निरंतर" की कलम से.....: कहीं बम फटे: कहीं बम फटे मैं शक से देखा जाता हूँ खाकी निकर पहन कर निकलता हूँ तो काफिर कहलाता हूँ कहीं मस्जिद में कुछ  फेंका  जाता है मु...

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से: कोई किश्ती किनारे नहीं लगी फिर भी किनारा आसूदा हो गया या तो इस किनारे से कोई किश्ती कभी पानी में उतरी ही नहीं उतरी तो भी ...

"निरंतर" की कलम से.....: बरगद का पेड़

"निरंतर" की कलम से.....: बरगद का पेड़: मेरे घर के बाहर लगा बरगद का पेड़ आकाश से गिरने वाली वर्षा की नन्ही बूंदों को पत्तों की गोद में लेकर उन्हें धीरे से धरती पर लुड्का ...

Thursday, July 25, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: बिना किसी का सच जाने

"निरंतर" की कलम से.....: बिना किसी का सच जाने: किसी ने किसी को बुरा इंसान बताया बिना किसी का सच जाने कहने वाले का मंतव्य जाने तुमने उसे गीता का पाठ समझ मन में बिठा लिय...

Wednesday, July 24, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: निश्चय अटल है

"निरंतर" की कलम से.....: निश्चय अटल है: जगत में अन्धकार घना है मगर मन उजाले से भरा है ऊर्जा से उफन रहा है पथ कठिन है मगर निश्चय अटल है धमनियों में उबलता रक्त है अ...

Tuesday, July 23, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: पूर्वाग्रह से ग्रस्त

"निरंतर" की कलम से.....: पूर्वाग्रह से ग्रस्त: मेरा लिखा आपको अच्छा नहीं लगे तो कोई बात नहीं बिना पढ़े, बिना सोचे समझे मन में पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर अगर आप ने कहा मैंने जो...

"निरंतर" की कलम से.....: पहली मुलाक़ात में ही

"निरंतर" की कलम से.....: पहली मुलाक़ात में ही: पहली मुलाक़ात में ही वो हमसे नाराज़ हो गए उन्हें तारीफ़ की उम्मीद थी हम हकीकत बयान कर गए बैठे ठाले एक दुश्मन और बढ़ा ब...

"निरंतर" की कलम से.....: जो मन कहता है

"निरंतर" की कलम से.....: जो मन कहता है: जो मन कहता है अवश्य करो पर करने से पहले क्या मन चेतन है जान लो जीवन की विषमताओं को सूक्ष्म दृष्टि से परख लो...

"निरंतर" की कलम से.....: प्रश्न यह नहीं है

"निरंतर" की कलम से.....: प्रश्न यह नहीं है: प्रश्न यह नहीं है किसी से कुछ मिलेगा या नहीं मिलेगा प्रश्न यह भी नहीं कोई कुछ देगा या ना देगा जिससे भी मन मिलता है जिसे भी ह...

"निरंतर" की कलम से.....: बात करने में क्या बिगड़ता है

"निरंतर" की कलम से.....: बात करने में क्या बिगड़ता है: जब लोगों को कहते सुनता हूँ बात करने में क्या बिगड़ता है बड़े बोल बोलने में क्या जाता है सोचने लगता हूँ कितना अच्छा होता ...

"निरंतर" की कलम से.....: हमने देखी है दोस्तों में मुर्रवत इतनी

"निरंतर" की कलम से.....: हमने देखी है दोस्तों में मुर्रवत इतनी: हमने देखी है दोस्तों में मुर्रवत इतनी चोट हमारे लगती थी आह उनकी निकलती थी अब देखते हैं अपनों  की  मोहब्बत इतनी हमारे चोट लगती...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या अधूरा नहीं है

"निरंतर" की कलम से.....: क्या अधूरा नहीं है: क्या अधूरा नहीं है इच्छाएं अधूरी रहती हैं आशाएं अधूरी रहती हैं ज्ञान अधूरा रहता है भावनाएं अधूरी रहती हैं कोई रिश्ता पूरा नहीं...

"निरंतर" की कलम से.....: हवा जब वृक्षों से आलिंगन करती है

"निरंतर" की कलम से.....: हवा जब वृक्षों से आलिंगन करती है: हवा जब  वृक्षों से आलिंगन  करती है पत्ता पत्ता डाली डाली झूमने लगती है चूम कर पत्तों को हवा जब सरसराती हुई अपने कर्तव्य पथ...

"निरंतर" की कलम से.....: सब्र का पैमाना

"निरंतर" की कलम से.....: सब्र का पैमाना: लोगों के सब्र का पैमाना इतना छलक चुका है अहम् इतना बढ़ चुका है कौन कब रूठ जाएगा अब पता ही नहीं चलता बात सोच समझ कर कही गयी हो...

"निरंतर" की कलम से.....: मन के बीहड़ में

"निरंतर" की कलम से.....: मन के बीहड़ में: मन के बीहड़ में जब बहम की दीमक पाँव फैलाने लगती हैं विश्वास के वृक्षों की जडें खोखली होने लगती हैं वृक्ष सूखने लगते हैं अव...

"निरंतर" की कलम से.....: सोने ना दिया

"निरंतर" की कलम से.....: सोने ना दिया: रात में सोने ना दिया दिन में जागने ना दिया हमसे वक़्त का लम्हा लम्हा छीन लिया ज़िन्दगी का कतरा कतरा अपने नाम कर लिया उसकी मो...

"निरंतर" की कलम से.....: हर नया दिन

"निरंतर" की कलम से.....: हर नया दिन: हर नया दिन एक कोरा कागज़ दिखता है पर कोरेपन के पीछे छिपी होती हैं असीम कुंठाएं अनगिनत यादें अनेकानेक इच्छाएं अपार आशाएं मन का  ...

"निरंतर" की कलम से.....: बात सच्ची भी थी मगर अनजाने में हुयी गलती भी थी

"निरंतर" की कलम से.....: बात सच्ची भी थी मगर अनजाने में हुयी गलती भी थी: बात सच्ची भी थी मगर अनजाने में हुयी गलती भी थी ये तो नहीं समझा तुमने बस बात को ह्रदय से लगा लिया तुमने हर गुहार को अनदेखा कर दिया त...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी ख़ामोशी का मतलब

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी ख़ामोशी का मतलब: मेरी ख़ामोशी से मत समझना तुम्हे चाहा नहीं , तुम्हे पाया तो नहीं , फिर भी खोया नहीं खवाबों ख्यालों मैं, रहती दखल तुम्हारी, ...

"निरंतर" की कलम से.....: त्वरित न्याय

"निरंतर" की कलम से.....: त्वरित न्याय: छ महीने पहले किसी ने भीड़ भरे बाज़ार में उसके पती का क़त्ल कर दिया निश्चिंतता से हाथ में हथियार में लिए भीड़ में गुम हो गया ...

"निरंतर" की कलम से.....: हम खुद को बदलते रहते है

"निरंतर" की कलम से.....: हम खुद को बदलते रहते है: हम खुद को बदलते रहते हैं कोई ना बदले कभी कैसे कहें खुद नकाब लगा कर रहते हैं लोगों को दोगला कैसे कहें खुद दिल में नफरत रखते हैं ...

"निरंतर" की कलम से.....: उम्र में बड़ा होना तुम्हें अधिकार नहीं देता

"निरंतर" की कलम से.....: उम्र में बड़ा होना तुम्हें अधिकार नहीं देता: उम्र में बड़ा होना तुम्हें अधिकार नहीं देता छोटों को कुछ भी कह दो तुम अपना बचपन याद करो उचित बात पर भी जब बड़ों की उचित अन...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों हमसे घबराते हो ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों हमसे घबराते हो ?: क्यों हमसे घबराते हो ? देख कर छुप जाते हो अगर निष्कपट हो  ह्रदय में पाप नहीं मन में शक नहीं तो सामने आओ आँखों से आँखें मिलाओ हँ...

"निरंतर" की कलम से.....: "मैं भी गुणी हूँ”

"निरंतर" की कलम से.....: "मैं भी गुणी हूँ”: क्यों हर बात में हर कार्य में  "मैं भी गुणी हूँ” जताने का प्रयत्न करते हो तुम बहुत बुद्धिमान हो लोगों को बताने का प्र...

"निरंतर" की कलम से.....: यही ज़िन्दगी है...

"निरंतर" की कलम से.....: यही ज़िन्दगी है...: एक मैं हूँ एक तुम हो एक वो है हम सब हैं अगर नहीं है तो केवल "निरंतर" वो ही तो कहता था कोई था तो सही मगर आज नही...

"निरंतर" की कलम से.....: आदमी से लड़ रहा है आदमी

"निरंतर" की कलम से.....: आदमी से लड़ रहा है आदमी: खुद से लड़ रहा है आदमी अपने परायों से लड़ रहा है आदमी आदमी से लड़ रहा है आदमी पर जीत किसी से नहीं रहा है आदमी अहम् से हार रहा है आदमी...

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी जब ग़मों के दरिया में डूबी हो

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी जब ग़मों के दरिया में डूबी हो: ज़िन्दगी जब ग़मों के दरिया में डूबी हो ज़माना दुश्मन लगता है लोगों की सरगोशियाँ भी साज़िश महसूस होती हैं किसी की मुस्काराहट ...

"निरंतर" की कलम से.....: क्षितिज पर हुआ मिलन जब गगन का धरा से

"निरंतर" की कलम से.....: क्षितिज पर हुआ मिलन जब गगन का धरा से: क्षितिज पर हुआ मिलन जब गगन का धरा से नम आँखों को देख कर गगन बोला धरा से अनभिग्य नहीं हूँ तुम्हारी व्यथा से तुमने ही पाला पोसा मनु...

"निरंतर" की कलम से.....: मार्ग दर्शन

"निरंतर" की कलम से.....: मार्ग दर्शन: तेल भी है दिया भी है बाती भी है पर आग  लगाने वाला कोई नहीं हिम्मत भी है होंसला भी है इच्छा भी है मगर पथ बताने वाला  ...

"निरंतर" की कलम से.....: क्योंकि मैं

"निरंतर" की कलम से.....: क्योंकि मैं: क्योंकि मैं केवल पीठ थपथपाने के लिए किसी की पीठ नहीं थपथपाता मेरी पीठ भी कोई नहीं थपथपाता इसमें बुरा भी क्या है उलटा मेर...

"निरंतर" की कलम से.....: हमने कुछ खोया है तो कुछ कमाया भी है

"निरंतर" की कलम से.....: हमने कुछ खोया है तो कुछ कमाया भी है: ज़िन्दगी में हमने कुछ खोया है तो कुछ कमाया भी है प्यार खोया है तो गम पाया भी है धोखा खाया है तो कुछ सीखा भी है गिर गिर कर ...

"निरंतर" की कलम से.....: ना जाने क्या हो गया है लोगों को

"निरंतर" की कलम से.....: ना जाने क्या हो गया है लोगों को: ना जाने क्या हो गया है लोगों को उन्हें खिजा मंज़ूर है मगर बहारें किसी और की हों तो देख कर रोते हैं जो मंदिर को पूजते हैं मस्...

"निरंतर" की कलम से.....: अति सब पर भारी पड़ती है

"निरंतर" की कलम से.....: अति सब पर भारी पड़ती है: नदी किनारे लगे उस पेड़ का क्या कसूर जो उफनती नदी के बहाव में उखड जाता है बदहवास भागती भीड़ के रेले में उस बालक का क्या कसू...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों मिलूँ किसी से

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों मिलूँ किसी से: क्यों मिलूँ किसी से जब तक कोई स्वार्थ नहीं क्यों समय गवाऊं जब तक कोई लाभ नहीं क्यों मन के रिश्ते बनाऊँ जब इंसान को इंसान की ...

"निरंतर" की कलम से.....: खुली जब आँख

"निरंतर" की कलम से.....: खुली जब आँख: खुली जब आँख तो जिसे भी अपना समझा वही पराया निकला फूलों की चाहत में दहकता हुआ अंगारा निकला सोचा था ज़िन्दगी भर साथ निभाएगा...

"निरंतर" की कलम से.....: जो मर गया देश के खातिर

"निरंतर" की कलम से.....: जो मर गया देश के खातिर: जो मर गया देश के खातिर उसे मर जाने दो दिखाने के लिए दो बूँद आसूं तुम भी बहा लो वो रोते रहेंगे जिनका कोई अपना संसार से ज...

"निरंतर" की कलम से.....: कुछ पलों के लिए

"निरंतर" की कलम से.....: कुछ पलों के लिए: खुद से बेहतर कोई नहीं लगा जो मन से सुनेगा मेरे मन की बातें लोग तो आज सुनेंगे कल कान से निकाल देंगे दुःख भी कम ना होंगे रह...

"निरंतर" की कलम से.....: दिन हो या रात

"निरंतर" की कलम से.....: दिन हो या रात: दिन हो या रात पूनम हो या अमावस बसंत हो या सावन मन व्यथित है जीना कठिन है तब तक  सब इकसार मेरे लिए 31-87-16-02-2013 व्यथ...

"निरंतर" की कलम से.....: सच कह देता हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: सच कह देता हूँ: मैं जानता हूँ तुम मुझसे सदा नाराज़ रहोगे मुझसे नफरत करोगे मेरी हर बात को नापसंद करोगे मन में जानते हो मगर अहम् से भरे हो ...

"निरंतर" की कलम से.....: इंसान हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: इंसान हूँ: इंसान हूँ समाज का हिस्सा हूँ मजबूरी में भीड़ के साथ रहता हूँ पर भीड़ से अलग चलता हूँ विवेक से सोचता हूँ त्रुटियों से सीखत...

"निरंतर" की कलम से.....: अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत

"निरंतर" की कलम से.....: अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत: मित्र को बाहों में सर छुपाये बैठा देखा विषाद का कारण पूछा रुआंसा होकर बोला   पहले मैं हंसता था सब पर आज सब मुझ पर हँस रहे हैं...

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता-रिश्वत मांगना अब मेरा भी धर्म हो गया ह...

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता-रिश्वत मांगना अब मेरा भी धर्म हो गया ह...: सरकारी डाक्टर की पत्नी ने पति से बुखार की दवाई मांगी डाक्टर ने तुरंत फीस मांग ली पत्नी बिफर गयी झल्ला कर बोली कैसे इंसान हो ज़रा भी...

"निरंतर" की कलम से.....: प्यार मोहब्बत सब झूठी बातें

"निरंतर" की कलम से.....: प्यार मोहब्बत सब झूठी बातें: प्यार मोहब्बत सब झूठी बातें रिश्ते नाते सब झूठी बातें जब तक दूसरों के मन की नहीं करो सारे बातें बेकार की बातें 26-82-16-02-201...

"निरंतर" की कलम से.....: पता नहीं कब हँसना होगा

"निरंतर" की कलम से.....: पता नहीं कब हँसना होगा: पता नहीं कब हँसना होगा पता नहीं कब तक सहना होगा अगर यही जीवन है तो क्या हर पल लड़ना होगा ऐसे ही जीना होगा ऐसे ही जाना होगा अगर...

"निरंतर" की कलम से.....: कैसे बताऊँ

"निरंतर" की कलम से.....: कैसे बताऊँ: कैसे बताऊँ तुम्हें कितना चाहता हूँ तुम इस कदर नफरत करने लगे हो गर सीना चाक कर भी दिल पर लिखा तुम्हारा नाम दिखा दूं तो भी ...

"निरंतर" की कलम से.....: हर देशवासी को भाई बना देता

"निरंतर" की कलम से.....: हर देशवासी को भाई बना देता: काश मराठी लिख पाता गुजराती पढ़ पाता बंगाली समझ पाता तमिल में गा पाता कन्नड़ बोल सकता तेलुगु में हँसी मज़ाक कर सकता पंजाबी...

"निरंतर" की कलम से.....: जब तक तुम मुझे अच्छे लगते हो

"निरंतर" की कलम से.....: जब तक तुम मुझे अच्छे लगते हो: जब तक तुम मुझे अच्छे लगते हो तुम्हारी हर बात मुझे अच्छी लगती रहेगी पर कब तक जब तक हमारे मन से मन मिलते रहेंगे जब अहम् अहं...