Sunday, August 26, 2012

ज़न्नत सी ज़िन्दगी को दोजख बना रहे हैं



महबूब की यादों के
चिराग जल रहे हैं
वो अकेले में बैठे
आँखों से आंसू ढलका
रहे हैं
सीने में दर्द के सैलाब
उठ रहे हैं
चाँद से चेहरे के सामने से
गम के बादल गुज़र
रहे हैं
चेहरे के नूर को कम
कर रहे हैं
ज़न्नत सी ज़िन्दगी को
दोजख बना रहे हैं
26-08-2012
703-63-08-12

अब तुम्ही बताओ



तुम सोचते हो
नज़रों से दूर हो जाओगे
तो दिल से उतर जाओगे
बेरुखी दिखाओगे तो
भुला दिए जाओगे
तुम्हारी मोहब्बत में
खुद को ही भूल चुके हैं
सिवाय तुम्हारे
हमें कुछ और याद नहीं
हर सांस के साथ
तुम्हारा नाम लेते हैं
दिल की हर धड़कन पर
तुम्हारा नाम लिखा है
खुदा मान कर
इबादत करी तुम्हारी
मिलो ना मिलो
चाहे बेरुखी दिखाओ
अब तुम्ही बताओ
तुम्हें कैसे भूल
सकते हैं हम
26-08-2012
702-62-08-12

ज़िन्दगी में उजाले के साथ अन्धेरा भी ज़रूरी



ज़िन्दगी में
उजाले के साथ
अन्धेरा भी ज़रूरी
हंसने के
साथ रोना भी ज़रूरी
दोस्त के साथ
दुश्मन भी ज़रूरी
ना हो गर ये सब साथ में
ना कोई
परवाह करेगा खुदा की
ना ही करेगा कद्र
ज़िन्दगी की
बन जाएगा हैवान
समझने लगेगा
खुद को
खुदा के बराबर
26-08-2012
701-61-08-12

कभी हँसी भी दे दे मुझे



या खुदा जी भर कर के
सज़ा दे दे मुझे
बस इतनी सी इल्तजा तुमसे 
जितनी भी सज़ा देनी है
एक बार ही दे दे मुझे
यूँ तिल तिल कर ना
मार मुझे
हर लम्हा ना रुला मुझे
कभी जीने का मौक़ा
भी दे दे मुझे
रुआंसे चेहरे पर कभी
हँसी भी दे दे मुझे
26-08-2012
700-60-08-12

मेरे ग़मों को मुझे ही सहने दो



मेरे ग़मों को मुझे ही
सहने दो
आंसूओं को पीने दो
ना चुप कराओ
ना एक लफ्ज़
हमदर्दी का कहो
जो लिखा मेरी किस्मत में
मुझे ही भुगतने दो
जो चाहते नहीं हँसू कभी
उन्हें खुल कर हँसने दो
उनके दिल को सुकून
मिलने दो
बस एक ख्वाहिश
बाकी है दिल में
दुनिया से जाने से पहले
एक बार मैं भी खुल कर
हँस लूं
एक छोटी सी
गुजारिश मेरी
चाहने वालों से
बस इतनी सी दुआ
कर लो
26-08-2012
699-59-08-12

दोस्ती में सौदा मत करो



खुद नफरत से
जीते हो
बात बात पर रूठते हो
रुसवा होने की धोंस
देते हो
हम से वफ़ा की
उम्मीद करते हो
निरंतर
अंगारे बरसाते हो
हमसे फूलों का
गुलदस्ता चाहते हो
ये क्यों नहीं समझते?
दोस्ती में निरंतर
लेने से
ज्यादा देना पड़ता
दुश्मन
आसानी से मिलते
दोस्त
किस्मत वालों को
मिलते
दोस्ती में सौदा मत करो
दोस्ती की कद्र करो
इलज़ाम
लगाना बंद करो
26-08-2012
698-58-08-12

कुली



खुद की ज़िन्दगी का
बोझ कम करने के लिए
ज़िन्दगी भर
दूसरों का बोझ
उठाता
नहीं देखता
हिन्दू या मुसलमान
राजा या रंक
उसे तो मतलब है
ज़िंदा रहने के लिए
बोझ उठा कर
मिलने वाले  कुछ पैसों से
सवेरे का उजाला हो
या रात का अन्धेरा
बोझ उठाने को ना मिले तो
चेहरा रूआंसा हो जाता
उम्र कितनी भी हो जाए
हँसते रहने के लिए
बोझ उठाना ज़रूरी है
उत्तर से दक्षिण तक
पूरब से पश्चिम तक
हर रेलवे स्टेशन पर
मिलने वाला
लाल कमीज़
सफ़ेद पाजामे वाला
वो हमारा कुली है
26-08-2012
697-57-08-12

देश आज़ाद है



बाप खदान में
पत्थर तोड़ता
माँ भट्टे पर मिट्टी
उठाती
फटे कपड़ों में बच्चा
कचरे के ढेर से थैलियाँ
बीनता
सुख की बात ही कहाँ ?
परिवार बामुश्किल
जीवित रहने के लिए
कड़ी धूप में झुलसता
एक दिन निकलता
शरीर पहले से अधिक
काला और कमज़ोर पड़ता
फिर भी बाप
छोटी सी खोली में
जिसका महीने का किराया
पत्नी के महीने भर की
मेहनत को लील लेता
प्रसन्नता से भगवान् को
धन्यवाद देता
कल का दिन निकल जाए
पेट भर जाए
मन से प्रार्थना करता
रात भर खांसता रहता
मकान,गाडी,का सपना
देखने का भी समय नहीं
मिलता
अभी ज़ल्दी भी कहाँ है
पेट की अग्नि बुझाने की
पक्की व्यवस्था हो जाए
तो वो भी देख लेगा
बातों में निरंतर सुनता
देश आज़ाद है
जनता की सरकार है
पर उसे
कोई फर्क नहीं पड़ता
उसे आजादी से
पहले और आज में
कोई फर्क नहीं लगता
जो अपने माँ बाप को
करते देखता था
वो भी वही कर रहा
26-08-2012
696-56-08-12

Tuesday, August 21, 2012

क्यों फ़िक्र करूं?


क्यों फ़िक्र करूं?
जो भी कहता हूँ
कहता हूँ
उनके भले के लिए
उन्हें परवाह नहीं तो
फिर मैं क्यों फ़िक्र करूं
मेरे प्यार को
जब नहीं समझ सके
तो मेरी फ़िक्र को
क्या समझेंगे
उनकी फ़िक्र में
खुद को क्यों दुखी करूँ
अब उम्मीद नहीं
समझेंगे मुझे कभी
वो अपने में मस्त
उन्हें मस्त ही रहने दूँ
क्यों रंग में भंग करूं
जब आयेगी खुद के
सर पर
खुद-ब -खुद समझ
जायेंगे
क्या होता है फर्क
अपने और पराये में
21-08-2012
686-46-08-12

(पीढी  अंतराल (Generation Gap)के कारण छोटे,बड़ों की बात नहीं मानते हैं तो
हताशा में जो विचार मन में उठते हैं ,उन्हें दर्शाती है यह रचना )

दिल बेचारा भी थक गया



दर्द-ऐ-दिल
किसी से कह ना पाया
मन ही मन घुटता रहा
दिल बेचारा भी थक गया
एक दिन कहने लगा
कब तक अकेले
ज़िन्दगी गुजारोगे
अब दर्द से किनारा
कर लो
मुझे किसी से
मिला दो
मन को सुकून
मुझ को राहत दे दो
21-08-2012
685-45-08-12

कैसी ये ज़िन्दगी,कब तक सतायेगी



कैसी ये ज़िन्दगी?
कब तक सतायेगी
होठों पे हँसी कब
लौटाएगी
कब तक रुलायेगी
हँसता था बेहिसाब पहले
मस्त थी ज़िन्दगी
मन की उदासी कब
हटाएगी
कौन बताएगा मुझे?
क्या खता हुयी?
किससे माँगू माफी?
क्या दुआ करूँ?
जो लौटे होठों पर हँसी
कैसी ये ज़िन्दगी?
कब तक सतायेगी
21-08-2012
684-44-08-12

उनका मुस्काराना गज़ब ढा गया



उनका मुस्काराना
गज़ब ढा गया
दिल की धडकनों को
तेज़ कर गया
शौक-ऐ-मोहब्बत को
मुकाम मिल गया
ठहरी हुयी ज़िन्दगी में
रंग भर गया
उनका ये अंदाज़
दिल को छू गया
फूल खिले तसव्वुर में
दिल उनका हो गया
बेलगाम घोड़े को
घुड सवार मिल गया
21-08-2012
683-43-08-12

कहना कुछ और चाहता हूँ ,समझा कुछ और जाता है



हमारी हर बात में
शायद एक हर्फ़
कम रह जाता है
बात का मतलब ही
बदल जाता है
तकलीफ का सबब
बन जाता है
कैसे समझाऊँ ?
खुद को बेगुनाह बताऊँ
कहना कुछ और
चाहता हूँ
समझा कुछ और
जाता है
21-08-2012
682-42-08-12


तुम फ़रिश्ता बनो ना बनो



तुम फ़रिश्ता
बनो ना बनो
इंसान तो बनो
स्वर्ग में जाओ ना जाओ
ज़मीन पर तो
इन्सान बन कर रहो
भगवान् से
प्रार्थना करो ना करो
इंसान से प्यार तो करो
मंदिर में जाओ
या मस्जिद में जाओ
शराफत से तो जियो
हँसो या रोओ
दूसरों को तो मत
रुलाओ
21-08-2012
681-41-08-12

रात को जब नींद नहीं आती है



रात को जब
नींद नहीं आती है
ख्याल परेशान करते हैं
तुम्हें याद करने लगता हूँ
ख़्वाबों में मिलने की
ख्व्हाइश करता हूँ
तुम कहोगी
तुम जुदा हो चुकी मुझ से
फिर क्यों तुम्हें याद
करता हूँ ?
मेरा जवाब सुन कर
नाराज़ ना होना
जब परेशान ही होना है
तो क्यों नहीं तुम्हें ही
याद करूँ
तुम्हारा सुन्दर चेहरा तो
दिखेगा
जुदाई में भी मिलन का
अहसास तो होगा मुझको
21-08-2012
680-40-08-12



कैसे ख्यालों को ज़हन में आने से रोकूँ



तुम ही बताओ
कैसे  ख्यालों को
ज़हन में आने से रोकूँ
कैसे ख़्वाबों को खुद से
दूर रखूँ
इतना तंगदिल भी नहीं
मेहमान को आने ही ना दूं
ये बात जुदा है
मेहमान पसंद का मेरा
दिल से चाहता उसे
हकीकत में
बुलाने से भी नहीं आता
ख्यालों ख़्वाबों में
बिना बुलाये भी आ जाता
शायद मोहब्बत को
ज़माने से छुपाना चाहता
21-08-2012
679-39-08-12