Thursday, March 31, 2011

रिश्ते तो रिश्ते होते



रिश्ते
बनाने से नहीं बनते
किस्मत से मिले रिश्ते
सदा दिल से नहीं जुड़ते
मजबूरी में ढ़ोने पड़ते
मन के रिश्ते खुद बनते
दिल में गुदगुदी करते
रिश्ते
निभाना आसान नहीं
रिश्तों में बहुत कुछ
सहना होता
दूसरे को समझना होता 
सब्र रखना पड़ता 
खुद से ज्यादा ख्याल
दूसरे का रखना होता
खुद रो कर दूसरे को
हंसाना पड़ता 
दिल लुटा कर
चुप रहना पड़ता
रिश्ते तो रिश्ते होते
निरंतर
बनते बिगड़ते रहते
जिस के कम बिगड़े
उसे भाग्यशाली
कहते
31-03-03
563—233-03-11

चुप क्यों हो?


कुछ तो बोलो
अब तो मुंह खोलो
क्या यादों में खो गए ?
कुछ सोच रहे ?
मन को टटोल रहे ?
ख्वाब टूट गए ?
ख्वाब देख रहे ?
पशोपश में हो?
कहूँ ?ना कहूँ ?
की उलझन में
फस गए ?
परेशाँ हो ?
परेशानी दूर करो
फैसला कर लो
लोगों को
ज्यादा तोला ना करो
पैमाने से ना नापा
करो
निरंतर कुछ कहते
रहो
जो मन में है,बताते
रहो
किसी से बांटते रहो
जहन को हल्का रखो
बोझ कम करते रहो
जीवन जीते रहो
आनंद लेते रहो
31-03-03
562—232-03-11

आसमान निरंतर रंग बदलता

आसमान
निरंतर रंग बदलता
कभी नीला,कभी लाल दिखता
सूर्य की लालिमा
अपने में समेटता
तपन बर्दाश्त करता
ऊर्जा जग को देता
जीवन को साकार करता
कभी चाँद की चांदनी में
चमकता
तारे गहने उसके,
आभा उसकी बढाते
पंछी उड़ कर,ठहरे हुए को
गतिमान बनाते
किस्म,किस्म के बादल
रूप जीवन के दर्शाते
घनघोर काले
वर्षा से जहाँ को भिगोते
जीवन का अहसास भरते
रुई से सफ़ेद बादल
परियों के देश के लगते
हवाओं में उड़ते रहते
पृथ्वी से उठा
काला,पीला धुंआ जज्ब करता
आकाश निरंतर स्थिर रहता
चुपचाप सब सहता रहता
भावनाओं में ना बहता
31-03-03
561—231-03-11

पहल कौन करे?


दोंनों ट्रेन में
आमने सामने बैठे थे
रह रह कर
एक दूसरे को देखते थे
चेहरे इक दूजे को
जाने पहचाने लगते 
कभी कनखियों से,
कभी नज़रें मिला कर
कहाँ देखा? 
याद करने की कोशिश 
करते रहे
दिमाग पर जोर डालते रहे ,
कौन पहल करे,सोचते रहे
स्टेशन आया
एक की यात्रा पूरी हुयी
जिज्ञासा ख़त्म ना हुयी
भाग कर डब्बे पर लगी
आरक्षण सूची पढी तो
उस सीट पर बैठे शख्श का
नाम पता पडा
याद आया पुराना मित्र था
स्कूल में साथ पढता था
आज चालीस वर्ष बाद
देखना हुआ
मिलने की इच्छा में भाग कर
डब्बे में चढ़ने के कोशिश करी ,
पर ट्रेन गति पकड़ चुकी थी
मिलने की इच्छा अधूरी रह गयी
झिझक और पहल कौन करे?
 के अहम् ने
आज मित्र से मिलने का
सुनहरी अवसर गवां दिया
अब पछता रहा था 
इंसान निरंतर अहम् में
खोता रहा
सिवा झूठी संतुष्टि किसी को
आज तक कुछ ना मिला
31-03-03
560—230-03-11

दिल और दिमाग में झगडा हुआ,दिमाग बोला दिल से,तुझे क्या चाहिए


  दिल  
और दिमाग में
झगडा हुआ
दिमाग बोला दिल से
तुझे क्या चाहिए
दिल ने जवाब दिया
सुकून दिमाग में  चाहिए
दिमाग बोला
अपने पर काबू रखा करो
ज्यादा  ना मचला करो
दिल बोला तुम्ही रास्ता
दिखाते हो
ज्यादा सोचते हो
परेशान खुद होते हो
निरंतर परेशाँ मुझे भी
करते हो
में तो दिल हूँ
दिल से दिल लगाता हूँ
अपने आप से मजबूर हूँ
दरवाज़ा खुला रखता हूँ
जो भी आ जाए
प्यार से उसे
रखता हूँ
06-11-2010

Wednesday, March 30, 2011

जब दिल ही दे दिया,फिर नाराजगी कैसी




उन्हें तो
आदत भूल जाने की
निरंतर हमें सताने की
वादे कर के भूल जाना
शौक उनका
ख़त का जवाब ना देना
अंदाज़ उनका
ना पहचानना अदा
उनकी
हम कैसे बराबरी करें
उनकी
हर हरकत मंजूर
उनकी
जब दिल ही दे दिया
फिर नाराजगी
कैसी
30-03-03
559—229-03-11