हताश, निराश, व्यथित
अवसाद में जी रहा था
सफलता का स्वाद
कभी ना चख सका
सोचने लगा
जीने का अर्थ ना था
जान देने का इरादा किया
नदी की और चल पडा
नदी में कूदने के लिए
पुल पर जाने लगा
एक आवाज़ ने रोक लिया
बिना हाथ पैरों वाला
एक शख्श उससे
दस रूपये मांग रहा था
वो रुका,
उसने उसे भिखारी समझा
सोचा मरने से पहले
उसकी मदद कर दूं
कुछ दुआ उस की ले लूं
सौ रूपये का नोट उसे दिया
उसने लौटा दिया
बोला भिखारी नहीं हूँ
पुल का चौकीदार हूँ
पुल का टैक्स वसूलता हूँ
निरंतर मेहनत और जज्बे से
जीवन यापन करता हूँ
कैंसर से पीड़ित हूँ
हिम्मत नहीं हारता हूँ
बात समझ में आ गयी
उसने इरादा बदला,
फिर से काम में जुट गया
उसे सफलता का नुस्खा
मिल गया
28-03-03
533—203-03-11
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