फूलों को देखता
खुद को भूलता
उनमें खोता
सपनों के संसार में
विचरता
मस्त होता
मीठी नींद सोता
आँख खुलते ही
हकीकत से
वाकिफ होता
कंटीले
कैक्टसों के बीच
खुद को पाता
कांटे जिस्म को
अन्दर तक छेदते
दर्द से बेहाल करते
काँटा निकालने की
कोशिश में
लहुलुहान होता
खून का घूँट पीता
उफ नहीं करता
काँटों की चुभन
सहता रहता
मुस्कान से छुपाता
निरंतर
खुशी बांटने की
कोशिश करता रहता
28-03-03
527—197-03-11
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